
senani.in
सियासत के अखाड़े बन
गए देश के अदबी रिसाले
ऐसे में यह प्रश्न बड़ा के
अदब को कौन संभाले
भाषाओं के विकास के नाम
पर बस हो रही खानापूर्ति
साहित्यिक संस्थाएं अब बन
गई हैं राजनेताओं की भृत्य
@ उमेश शुक्ल

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सियासत के अखाड़े बन
गए देश के अदबी रिसाले
ऐसे में यह प्रश्न बड़ा के
अदब को कौन संभाले
भाषाओं के विकास के नाम
पर बस हो रही खानापूर्ति
साहित्यिक संस्थाएं अब बन
गई हैं राजनेताओं की भृत्य
@ उमेश शुक्ल