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@ उमेश शुक्ल

धनहीनों की कौन सुनेगा
अब धनवानों की बस्ती में
जननायक सब झूम रहे हैं
सत्ता महफिल मस्ती में
श्रीहीन मानव बने हुए हैं
अब धनवानों का चारा
ऐसे में वो बचेगा कैसे
जब है बलहीन बेचारा
विद्वतजन भी दिखला गए
हक खातिर संघर्ष की राह
बिना हिले डुले कहां पूरी
होती मानव की कोई चाह

Nice
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