
ज्योतिषी आचार्य डॉ सुधानंद झा के अनुसार दिशाओं के ज्ञान से सफलता की राह में नहीं कोई रुकावट, हर यात्रा होगी सफल
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डिजिटल डेस्क
जब किसी लड़की की नई-नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है और उसे मायके, ससुराल या कहीं और जाना होता है तो घर के बड़े-बुजुर्ग अक्सर पंडितजी से दिन दिखवाते हैं। पंडितजी के बताए अनुसार ही यात्रा की तिथि तय होती है।
आप जानते हैं क्यों बड़े-बुजुर्ग तिथि देखकर आने-जाने की रोक-टोक करते हैं? दरअसल, पंडितजी बताते हैं कि किस दिन किस दिशा में यात्रा करना शुभ होगा? जिस दिशा में जिस दिन यात्रा वर्जित होती है, उसे दिशाशूल कहते हैं।
चार नहीं, दस होती हैं दिशाएं
दिशाशूल समझने से पहले हमें दस दिशाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। हम सबने पढ़ा है कि दिशाएं चार होती हैं, जिन्हें हम पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के नाम से जानते हैं। लेकिन, जब हम उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं तो ज्ञात होता है कि वास्तव में दिशाएं दस होती हैं।
ये हैं दस दिशाएं

-पूर्व
-पश्चिम
-उत्तर
-दक्षिण
-उत्तर-पूर्व
-उत्तर-पश्चिम
-दक्षिण–पूर्व
-दक्षिण–पश्चिम
-आकाश
-पृथ्वी
हिन्दू धर्मग्रंथों में दस दिशाओं का वर्णन
आचार्य सुधानंद झा के अनुसार हमारे सनातन धर्म के ग्रंथों में सदैव दस दिशाओं का ही वर्णन किया गया है। जैसे हनुमानजी ने युद्ध में इतनी आवाजें कीं कि उनकी आवाज दसों दिशाओं में सुनाई दी।
हर दिशा के होते हैं देवता
हम यह भी जानते हैं कि प्रत्येक दिशा के देवता होते हैं।
ज्योतिष से आसान होता है जीवन
दसों दिशाओं को समझने के बाद अब हम बात करते हैं वैदिक ज्योतिष की। आचार्य के अनुसार ज्योतिष शब्द ज्योति से बना है, जिसका भावार्थ होता है प्रकाश। वैदिक ज्योतिष में अत्यंत विस्तृत रूप में मनुष्य के जीवन की हर परिस्थिति से संबंधित विश्लेषण किया गया है। मनुष्य यदि इसको तनिक भी समझ ले तो वह अपने जीवन में उत्पन्न होने वाली बहुत सी समस्याओं से बच सकता है और अपना जीवन सुखी बना सकता है।
दिशाशूल का अर्थ
दिशाशूल वह दिशा है, जिस तरफ यात्रा नहीं करना चाहिए। हर दिन किसी एक दिशा की ओर दिशाशूल होता है।
किस दिन किस दिशा की यात्रा न करें

-सोमवार और शुक्रवार को पूर्व की यात्रा नहीं करनी चाहिए
-रविवार और शुक्रवार को पश्चिम की यात्रा नहीं करनी चाहिए
-मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में यात्रा से परहेज करें
-गुरुवार को दक्षिण दिशा में यात्रा न करें
-सोमवार और गुरुवार को दक्षिण-पूर्व जाने से भी बचें
-रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम में जाने से बचें
-मंगलवार को उत्तर-पश्चिम में न जाएं
-बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व दिशा में यात्रा न करें
लेकिन, इस स्थिति में है छूट
आचार्य बताते हैं कि यदि एक ही दिन यात्रा करके उसी दिन वापस आ जाना हो तो ऐसी दशा में दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता। लेकिन, यदि कोई आवश्यक कार्य हो ओर उसी दिशा की तरफ यात्रा करनी पड़े, जिस दिन वहां दिशाशूल हो तो नीचे बताए गए उपाय करके यात्रा कर लेनी चाहिए–
रविवार : दलिया और घी खाकर
सोमवार : दर्पण देखकर
मंगलवार : गुड़ खाकर
बुधवार : तिल, धनिया खाकर
गुरुवार : दही खाकर
शुक्रवार : जौ खाकर
शनिवार : अदरक अथवा उड़द की दाल खाकर
…तो बाधाएं होंगी दूर
आचार्य के अनुसार साधारणत्या दिशाशूल का इतना विचार नहीं किया जाता। लेकिन, यदि जीवन का अति महत्वपूर्ण कार्य है तो दिशाशूल का ज्ञान होने से व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं से बच सकता है।
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